पति सहवास में अति करने, अप्राकृतिक एवं असुविधापूर्ण आसनों में अति वेग के साथ सहवास करने, अति प्रसव करने और शरीर के कमजोर एवं शिथिल होने के कारण स्त्रियों का योनि मार्ग ढीला, पोला और विस्तीर्ण हो जाता है, जिससे सहवास करते समय सुख एवं आनन्द की अनुभूति नहीं होती।
ऐसी स्थिति में प्रायः पति लोग सहवास क्रिया में रुचि नहीं ले पाते और कोई-कोई पति परस्त्रीगमन की ओर उन्मुख हो जाते हैं। विलासी एवं रसिक स्वभाव के पति घर की सुन्दर नौकरानियों से ही यौन संबंध कायम कर लेते हैं। इस व्याधि को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी एवं कारामद सिद्ध हुए हैं।
चिकित्सा
(1) भांग को कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को 5-6 ग्राम (एक छोटा चम्मचभर) मात्रा में, एक महीन मलमल के साफ सफेद कपड़े पर रखकर छोटी सी पोटली बनाकर मजबूत धागे से बांध दें। धागा लम्बा रखें, ताकि धागे को खींचकर पोटली बाहर खींची जा सके। रात को सोते समय इस पोटली को पानी में डुबोकर गीली कर लें एवं योनि मार्ग में अन्दर तक सरकाकर रख लें और सुबह निकालकर फेंक दें। लाभ न होने तक यह प्रयोग जारी रखें।
(2) माजूफल का चूर्ण 100 ग्राम मोचरस का चूर्ण 50 ग्राम और लाल फिटकरी 25 ग्राम। सबको कूट-पीसकर मिलाकर रखें। पहले 20 ग्राम खड़े मूंग 3 कप पानी में खूब उबालें और बाद में छानकर इस पानी से डूश करें। एक रूई का बड़ा फाहा पानी में गीला कर निचोड़ लें और इस पर ऊपर बताया चूर्ण बुरककर यह फाहा सोते समय योनि में रखें। इन दोनों में से कोई एक प्रयोग कुछ दिन तक करने से योनि तंग और सुदृढ़ हो जाती है।
(3) शंखचालनी मुद्रा तथा मूलबंध का अभ्यास करना और मूत्र विसर्जन करते समय रोक-रोककर पेशाब करना, ये तीन उपाय योनि को चुस्त-दुरुस्त, सशक्त और संकीर्ण बनाते हैं। नियमित रूप से थोड़ी देर वज्रासन पर बैठकर शंखचालनी मुद्रा व मूलबंध लगाने का अभ्यास करना चाहिए।
(4) श्रोणितल की पेशियों में कमजोरी आने से योनि में कसाव कम हो जाता है और ढीलापनमहसूस होने लगता है. योनि की पेशियां चुस्त दुरुस्त बनाने से योनि का ढीलापन दूर किया जा सकता है और चरम योनसुख की आनंदानुभूति जागृत की जा सकती है. इसके लिये एक साधारण सा व्यायाम है जिससे प्यूबोकाक्सीजियस पेशी मजबूत होती जाती है. जिससे योनि का ढ़ीलापन दूर होता जाता है.इस व्यायाम को कहीं भी , कभी भी और किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है. इसके लिये करना यह होता है कि मूत्र प्रवाह रोकने वाली पेशी को अंदर की ओर ठीक वैसे भींचे जैसे कि मूत्र के वेग को रोक रही हों. अगले तीन सेकेण्ड तक प्यूबोकाक्सीजियस पेशी को इसी प्रकार अंदर ही अंदर भींचे रखें. फिर अगले 3 सेकेण्ड के लिये शरीर को ढीला छोड़ दें. अब एक बार फिर प्यूबोकाक्सीजियस पेशी को 3 सेकेण्ड तक अंदर भींचे. फिर 3 सेकेण्ड के लिये पेशी को ढीला छोड़ दें. यह व्यायाम 10-10 बार सुबह शाम करें और फिर बढ़ाते हुए 25-25बार सुबह और शाम करें. अभ्यास हो जाने पर तेज गति से करने लगें.इस व्यायाम से 2-3 माह में ही आप अपने भीतर बड़ा परिवर्तन महसूस करने लगेंगी. इसे करते रहने से आपके श्रोणिगुहा के अंगों को समुचित आवलंबन मिलता रहेगा.